گفت ليلي را خليفه كان توي |
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كز تو مجنون شد پريشان و غوي |
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از دگر خوبان تو افزون نيستي |
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گفت خامش چون تو مجنون نيستي |
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هر كه بيدارست او در خوابتر |
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چون بحق بيدار نبود جان ما |
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هست بيداري چو در بندان ما |
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جان همه روز از لگدكوب خيال |
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وز زيان و سود وز خوف زوال |
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ني صفا ميماندش ني لطف و فر |
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خفته آن باشد كه او از هر خيال |
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دارد اوميد و كند با او مقال |
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ديو را چون حور بيند او به خواب |
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پس ز شهوت ريزد او با ديو آب |
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چونك تخم نسل را در شوره ريخت |
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او به خويش آمد خيال از وي گريخت |
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ضعف سر بيند از آن و تن پليد |
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مرغ بر بالا و زير آن سايهاش |
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ميدود بر خاك پران مرغوش |
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ميدود چندانك بيمايه شود |
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بيخبر كان عكس آن مرغ هواست |
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بيخبر كه اصل آن سايه كجاست |
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تير اندازد به سوي سايه او |
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تركشش خالي شود از جست و جو |
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از دويدن در شكار سايه تفت |
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سايهء يزدان چو باشد دايهاش |
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وا رهاند از خيال و سايهاش |
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مرده او زين عالم و زنده خدا |
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اندرين وادي مرو بي اين دليل |
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لا احب الآفلين گو چون خليل |
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